
कढ़ाई चिकन एक रुपये में और बटर नान 6 रुपये में! जी हां आप बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं। अहमदाबाद निवासी 22 साल के कनिष्क सजनानी ने आईआरसीटीसी की वेबसाइट से मुंबई की यात्रा के दौरान इसी कीमत में भोजन ऑर्डर किया था। हैरानी की बात यह है कि वेबसाइट में इस तकनीकी खराबी के बारे में उनके जानकारी देने के बाद भी अधिकारियों ने सात महीने तक इसे ठीक नहीं किया था।
दरअसल कनिष्क एक एथिकल हैकर हैं। एथिकल हैकर्स की सहायता साइबर क्राइम के मामलों को सुलझाने में ली जाती है। पिछले साल जून महीने में जब कनिष्क को पता चला कि वह आईआरसीटीसी की वेबसाइट से मुफ्त में खाना ऑर्डर कर सकते हैं तो उन्होंने तुरंत आईआरसीटीसी के चेयरमैन को इससे अवगत कराया। यही नहीं उन्होंने 25 जून को तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभु को इससे संबंधित ई-मेल भी भेजे।
लेकिन जब कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने इसका सबूत इकट्ठा करने के लिए सिस्टम को हैक करके 22 जून 2017 को अहमदाबाद से मुंबई के सफर के दौरान कढ़ाई चिकन और बटर नान ऑर्डर किया। कनिष्क ने बताया, ‘मैंने 163 रुपये के कढ़ाई चिकन के लिए 1.03 रुपये मोबिक्विक वॉलेट से भुगतान किया और 68 रुपये के बटर नान के लिए 6 रुपये पेटीएम के जरिए दिए।’

उन्होंने बताया कि इस जानकारी को अभी तक इसलिए सामने नहीं लाया गया था क्योंकि वह आईआरसीटीसी अधिकारियों का इस पर ऐक्शन लेने की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि इसका गलत इस्तेमाल न किया जा सके। कनिष्क ने आईआरसीटीसी के अधिकारियों को उनकी दो अन्य वेबसाइट के भी इसके चपेट में आने के बारे में सूचित किया। इनमें ई-कैटरिंग वेबसाइट को संशोधित कर लिया है जबकि दो अन्य पोर्टल्स पर काम जारी है।
बेघरों को दे दिया था खाना
आईआरसीटीसी द्वारा 3 फरवरी 2018 को रिपेयर किया गया। कनिष्क ने बताया कि उन्होंने मुफ्त में ऑर्डर किया हुआ खाना खुद न खाकर मुंबई सेंट्रल स्टेशन में मौजूद बेघरों को दे दिया था।
कनिष्क इससे पहले भी 2016 में एयर इंडिया की वेबसाइट हैक करने के चलते सुर्खियों में आए थे। इसके अलावा उन्होंने एक प्राइवेट एयरलाइन, ट्रैवल पोर्टल, ऑनलाइन फूड ऑर्डर सर्विस और एक मोबाइल वॉलेट कंपनी के ऑनलाइन ऑपरेशन में तकनीकी खामियों को उजागर किया था।
कौन होते हैं एथिकल हैकर?
एथिकल हैकर एक ऐसा व्यक्ति है जो कानूनी तौर पर हैकिंग से बचने के लिए अपने सिस्टम को चुस्त बनाता है। ऐसे लोगों को क्रिमिनल की तरह सोचने की क्षमता होनी चाहिए, ताकि अपराधियों के दिमाग को समझा जा सके और किसी संभावित अटैक से सिस्टम को बचाया जा सके।